आँटी ने अपनी आँखें बंद कर ली, लगता था वो भी जय के साथ झड़ रही हैं, क्योंकी आँटी की पैंटी और सलवार गीली हो गई थी। जय का लण्ड आँटी की हलक तक अंदर था। इसीलिए आँटी को उसका सारा माल पीना पड़ा। थोड़ी देर बाद जय ने अपना लण्ड आँटी के मुँह से निकाला, आँटी खांस रही थी और कुछ रुका हुआ माल नीचे गिरने लगा। ऑटी ने नीचे गिरा हुआ माल अपनी जुबान निकालकर चाट लिया और जय के लण्ड को भी अच्छी तरह साफ कर दिया।
मैं और बिंदिया अपनी पैंटी और कच्छी नीचे करके एक दूसरे की चूत को ना जाने कितनी बार झड़ा चुकी थी।
जय ने आँटी से कहा- “तुम्हें मैंने अपने प्रमोशन के बारे में बताया था तुम्हें याद है?”
आँटी ने कहा- “हाँ याद है, कब हो रहा है तुम्हारा प्रमोशन?”
जय- “तुम्हें मेरी मदद करनी होगी तभी मेरा प्रमोशन होगा। आकाश मेरे प्रमोशन के खिलाफ है…”
आँटी- “यह आकाश कौन है? और भला मैं क्या कर सकती हूँ?”
जय- “मेरे बास का नाम आकाश है और वो लड़कियों का बहुत शौकीन है। तुम्हें उसे खुश करना होगा…”
आँटी- “तुमने मुझे क्या रंडी समझकर रखा है जो जिसके साथ तुम कहोगे मैं सो जाऊँगी…” आँटी ने गुस्से से कहा- “तुम किसी रंडी को उसके पास क्यों नहीं ले जाते?”
जय- “वो बहुत खेला हुआ खिलाड़ी है, वो सिर्फ घरेलू औरतों को पसंद करता है। रंडी को वो जल्दी से पहचान लेगा। मैंने आज तक तुमसे कुछ नहीं माँगा। तुम्हें मेरे लिए यह काम करना होगा। मैं सारी उमर तुम्हारा गुलाम बनकर रहूँगा…”
आँटी ने पूछा- “अच्छा ठीक है। मगर यह कैसे होगा?”
जय- “वो तुम मुझ पर छोड़ दो जानेमन.. मैं रात को उसे यहाँ भेज दूंगा…”
जय ने आँटी को बाहों में भरते हुए बिस्तर पर पटक दिया और उसके सारे कपड़े उतार दिए। जय ने आँटी की छाती अपने मुँह में भरते हुए अपने दाँतों से उसकी छाती पे काटने लगा। आँटी सिसकने लगी और जय को अपनी छाती पे दबाने लगी। थोड़ी देर छाती चाटने के बाद जय अपने मुँह को नीचे ले जाने लगा और आँटी की चूत के दाने को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा।
आँटी मजे से- “ओहह… आअह्ह्ह…” करके सिसकने लगी।
जय ने अपना मुँह दाने से हटाते ही आँटी की चूत के होंठों को एक दूसरे से अलग किया और अपनी जीभ निकालकर अंदर डाल दी। जय अपनी पूरी जीभ आँटी की चूत में डालकर अंदर-बाहर कर रहा था। आँटी मजे से पागल होकर जय को अपने ऊपर खींचकर 69 पोजीशन में ले आई और जय के लण्ड को अपने कोमल हाथों से ऊपर-नीचे करने लगी। थोड़ी देर बाद जब उसका हाथ दुखने लगा तो उसने जय का लण्ड अपने मुँह में डालकर दोनों हाथों से उसे आगे-पीछे करने लगी। आँटी जय का लण्ड चूसते हुए कभी बाहर निकालकर उसे अपनी जुबान से ऊपर से नीचे तक चाटती हुई अंडों को भी अपने मुँह में भर लेती।
जय का लण्ड अब फिर से पूरी तरह तन चुका था। उसने आँटी को सीधा लेटाते हुए उसकी दोनों टाँगों को घुटनों तक मोड़ दिया। इस पोजीशन में आँटी की फूली हुई चूत बिल्कुल बाहर आ चुकी थी। जय ने अपना लण्ड आँटी की गीली चूत पे रखा और एक झटका मारा, तो जय का आधा लण्ड अंदर जा चुका था। जय ने अपना लण्ड थोड़ा बाहर निकालकर एक और जोर का झटका मारा, जय का लण्ड पूरा आँटी की चूत में था।
आँटी मजे से कराह उठी- “आहह्ह…”
जय ने नीचे झुकते हुए अपने होंठ आँटी के गुलाबी होंठों पर रख दिए। आँटी के मुँह से आह निकल गई और दोनों के होंठ एक दूसरे से मिल गये। जय होंठों का रस चूसते हुए नीचे से तेज धक्के लगाने लगा। आँटी मजे से हवा में उड़ रही थी। आँटी ने जय को जोर से दबोचकर चुंबन में जय का साथ देने लगी और अपने चूतड़ उठाकर धक्कों का जवाब देने लगी। जय अपने हाथों से आँटी की बड़ी-बड़ी चूचियां मसलने लगा। आँटी तीन तरफा हमला ना सहते हुए झड़ने लगी। आँटी के झड़ने के बाद जय ने अपनी स्पीड बहुत तेज कर दी। आँटी ने अपनी जुबान जय मुँह में डाल दी।
जय पागलों की तरह आँटी की जुबान को चूसता हुआ धक्के लगाने लगा। कुछ मिनट बाद जय ने आँटी के मुँह से अपनी जुबान निकालकर आँटी की टाँगें हवा में उठा ली और अपना पूरा लण्ड बाहर निकालकर जड़ तक धक्के लगाने लगा और 8-10 धक्कों के बाद आँटी की चूत में झड़ने लगा। आँटी की चूत से पानी की बूंदें नीचे गिरने लगी। जय हाँफता हुआ आँटी के ऊपर ढेर हो गया।
मैं और बिंदिया जल्दी से अपने कमरे में आ गये और दरवाजा बंद कर लिया। मैं और बिंदिया अंदर आते ही एक दूसरे से लिपट गये, क्योंकी हम दोनों चाची और जय की रोमांचक चुदाई देखकर बहुत गर्म हो गई थी। बिंदिया ने मुझे अपनी बाँहों में लेते हुए अपने गुलाबी होंठ मेरे सुलगाते गर्म होंठों पर रख दिए। मेरा सारा बदन मजे से अकड़ने लगा।
इससे पहले कभी किसी ने भी मुझे चुंबन नहीं दिया था। मैं पागलों की तरह बिंदिया के होंठ की तरह बिंदिया से लिपट गई और उसके होंठ चूसने लगी। मैंने अपनी जीभ निकालकर बिंदिया के मुँह में डाल दी। वो मेरी जीभ को पकड़कर चूसने लगी, और अपनी जीभ भी मेरे मुँह में डाल दी, जिसे मैं चाटने लगी। कुछ देर एक दूसरे की जीभ चाटने के बाद बिंदिया ने मेरी बाहों को ऊपर उठाया और मेरी कमीज उतार दी। मेरी साँसें उखड़ने लगी और मेरी चूचियां मेरी साँसों के साथ ऊपर-नीचे होने लगी।
मेरी चूचियां बिंदिया जितनी बड़ी नहीं थी मगर बिल्कुल गोल-गोल और ऊपर उठी हुई थी। बिंदिया मेरी ब्रा के ऊपर से ही मेरी छातियों को खा जाने वाली नजरों से देखते हुए मेरे पीछे आ गई और मेरी ब्रा के हुक खोल । दिए। ब्रा उतारने के बाद बिंदिया ने पीछे से ही अपनी चूचियां मेरी पीठ से रगड़ते हुए मेरी छातियों को अपने हाथों से दबाने लगी। अचानक बिंदिया ने मेरे कंधे को चूमते हुए मेरे कान की एक लौ अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। मेरी मुँह से सिसकियां निकलने लगी। बिंदिया मेरे तने हुए सख़्त निपलों को अपनी उंगलियों से खींचने लगी।
मेरे मुँह से एक हल्की चीख निकल गई- “ऊऊईई… बिंदिया क्या कर रही हो?” मैंने बिंदिया का हाथ हटाते हुए उसे सीधा किया और उसकी बाँहें उठाकर उसकी कमीज उतार दी।
बिंदिया की बड़ी-बड़ी चूचियां ब्रा को फाड़कर बाहर निकलने के लिए मचल रही थीं। मैंने उसकी ब्रा भी निकाल दी। बिंदिया की छातियां बहुत बड़ी थी। उसके निपल तनकर मोटे हो गये थे। बिंदिया मुझे बाहों में लेते हुए अपनी चूचियां मेरी छातियों से रगड़ने लगी। हम दोनों के जिश्म बहुत गर्म हो गये थे, चूचियां आपस में टकराने से हम दोनों के कड़े निपलों एक दूसरे से रगड़ खा रहे थे और हम दोनों मजे से सिसक रहे थे।
बिंदिया ने नीचे होकर मेरी एक छाती को अपने मुँह में भर लिया और उसे बड़े जोर से चाटने लगी। मेरे सारे बदन में बिजली दौड़ने लगी और मजे से मेरी आँखें बंद होने लगी। मैं बिंदिया के सिर को पकड़कर अपनी छाती पर दबाने लगी। बिंदिया ने अब मेरी दूसरी छाती अपने मुँह में ले ली और पहली वाली को हाथों से सहलाने लगी। अब बिंदिया नीचे होते हुए मेरी नाभि पर आ गई और अपनी जीभ निकालकर मेरी नाभि को चाटने लगी और मेरी सलवार को उतारकर मेरी चड्ढी के ऊपर से मेरी चूत को सहलाने लगी।
मेरे मुँह से सिसकियां निकल रही थी।
अचानक बिंदिया ने मुझे बेड पर लेटाते हुए अपनी सलवार और चड्ढी निकाल दी। अब वो मेरे सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी। बिंदिया की चूत पे हल्के बाल थे, और उत्तेजना के मारे वो टमाटर की तरह लाल हो गई थी।
बिंदिया मेरे पास आई और मेरी कच्छी भी उतार दी। वो मेरी चूत को बड़े गौर से देख रही थी। मेरी चूत बहुत गीली हो चुकी थी और उससे कुछ पानी की बूंदें निकलकर मेरी जांघों तक आ रही थी। बिंदिया मेरी टाँगों को। खोलकर मेरी चूत के नरम होंठों को सहलाने लगी। मेरी साँसें रुकने लगी। मुझे आज जैसा मजा अपने हाथों से भी नहीं आया था।
मैंने मजे से सिसकते हुए अपना एक हाथ उसके हाथ के ऊपर रख लिया और दूसरा हाथ उसकी भारी भरकम नितंबों पे रखकर सहलाने लगी। बिंदिया ने अपने गरम होंठ मेरी चूत पर रख दिए। वो मेरी चूत के ऊपर अपनी जीभ फिरा रही थी। मेरी आँखें बंद होने लगी और मैं जोर से सिसकने लगी ‘ऊहह… आह्ह्ह..’ और मैंने अपनी टाँगें जितनी हो सकती थी खोल दी। बिंदिया की जीभ मेरी चूत को बहुत तेजी से चाट रही थी। मैं अपने हाथ बिंदिया के रेशमी बालों में डालकर उसका सिर सहला रही थी। अचानक बिंदिया ने मेरी चूत के होंठ खोलकर अपनी जीभ अंदर डाल दी।
मैं मजे से सातवें आसमान का सैर करने लगी। मैं अपने काबू में नहीं थी। मैंने बिंदिया को अपनी चूत पर बहुत जोर से दबा दिया। उसकी पूरी जीभ मेरी चूत के अंदर थी और वो मेरी चूत को अंदर से चाट रही थी। मेरी साँसे उखड़ने लगी और मैं एक बड़ी सिसकी के साथ ‘ओहईई… बिंदिया’ कहते हुए झड़ गई। मैं एकदम से निढाल हो गई और ना जाने कितनी मनी मेरे अंदर से निकली थी जो बिंदिया ने एक-एक कतरा तक मेरी गुलाबी चूत से चूस लिया। मैं ऐसे शांत हो गई जैसे समुंदर तूफान के बाद शांत हो जाता है।
बिंदिया अब उठकर मेरे ऊपर आ गई और मेरी चूत के पानी से भीगे होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। मुझे बिंदिया के मुँह से भीनी-भीनी खुश्बू आ रही थी। मेरा जिश्म फिर से गर्म होने लगा। मैंने बिंदिया को नीचे लेटाते हुए उसकी बड़ी-बड़ी छातियों को अपने मुँह में ले लिया और उसके निपलों को चूसने लगी।
इस बार सिसकने की बारी बिंदिया की थी। मैं बिंदिया की नरम छातियों को हाथों से रगड़ते हुए नीचे जाने लगी। मैंने अपना मुँह बिंदिया की चूत पे रखा, उसकी चूत से चिपचिपा सा पानी निकल रहा था। मुझे उसके चूत से मदहोश करने वाली महक आ रही थी। उसकी चूत के होंठ गुलाबी और फूले हुए थे। मैंने अपनी जीभ बाहर । निकालकर उसकी चूत के होंठ पर रख दिए और जीभ अंदर डालकर उसकी बहती मनी को चाटने लगी। उसकी मनी का स्वाद बहुत अजीब था, मगर मुझे वो बहुत अच्छा लग रहा था।
बिंदिया के मुँह से अब सिसकियां निकलने लगी, और वो अपने हाथों से मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाने लगी। मैंने उसकी चूत को पूरा अपने मुँह में लेकर अपनी साँस पीछे खींची। बिंदिया अपने नितंब उछालते हुए जोर से सिसकी ‘ओऊऊ… और अपनी मनी से मेरे मुँह को भरने लगी। उसकी मनी का स्वाद अंजाना था मगर मुझे अच्छा लग रहा था। मैंने उसकी सारी मनी चाट ली, और उसके साइड में जाकर लेट गई। बिंदिया ने लज्जत से बंद की हुई अपनी आँखें खोली और मुझे देखकर मुश्कुराई और मुझे अपनी बाहों में भर लिया।
बिंदिया- “धन्नो तुम बिल्कुल सच कह रही थी। माँ तो किसी अंजान आदमी से चुदवा रही थी…”
मैंने बिंदिया के नंगे नितंब पे अपना हाथ फेरते हुए कहा- “इसमें आँटी का कोई कसूर नहीं है…”
बिंदिया हैरत से बोली- “तुम क्या बोलना चाहती हो, क्या वो यह सब सही कर रही है?”
मैं- “हाँ। तुम खुद सोचो की तुम यह सब देखकर इतनी गर्म हो गई, आँटी तो शादीशुदा थी, अंकल के गुजर जाने के बाद उसकी भी कुछ जरूरतें होंगी, इसीलिए उसने जय को अपना सहारा बना लिया…” और हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में कब नींद की आगोश में चले गये पता ही नहीं चला।