मैंने जाकर उसे हाय कहा और उनके साथ बैठ गई। बिंदिया आज बहुत बन-ठन के बैठी थी। मैं समझ गई की रोहन ने पहले ही बिंदिया को कह दिया होगा की कल मैं आऊँगा।
सोनाली आँटी रोहन से पूछने लगी- “तुम्हारे परिवार में और कौन-कौन है?”
रोहन ने कहा- “आँटी मैं अपने माँ बाप की एकलौती औलाद हूँ और मेरे पिताजी यहां के मशहूर बिसनेसमैन रवी मल्होत्रा हैं…” फिर रोहन ने बातें करते हुए आँटी से कह दिया- “आँटी मैं बिंदिया से प्यार करता हूँ, बहुत जल्द मैं अपने मम्मी पापा के साथ इसका रिश्ता लेने आऊँगा…”
बिंदिया ने शर्माकर अपना मुँह नीचे कर दिया। मैं रोहन की दिलेरी को देखकर हैरान रह गई।
आँटी ने कहा- “बेटा मुझे कोई एतराज नहीं है। भला एक माँ को अपनी बेटी के लिए और क्या चाहिये? एक अच्छा लड़का और वो सारी खूबियां तुममें है…”
रोहन ने आँटी की बात सुनकर खुश होते हुए कहा- “आँटी आपने मेरी सारी टेंशन दूर कर दी। मैं जल्द से जल्द मम्मी-पापा से बात करके उन्हें बिंदिया के बारे में बता दूंगा…”
आँटी ने कहा- ठीक है। मगर तुम दोनों की शादी तुम्हारे एग्जाम्स के बाद होगी।
रोहन ने कहा- “कोई बात नहीं, वैसे भी एग्जाम नजदीक हैं..” और रोहन ने पूछा- “आँटी, मैं शाम को बिंदिया को घुमाने ले जा सकता हूँ?”
आँटी ने मुश्कुराते हुए कहा- “बिंदिया अब तुम्हारी ही अमानत है, तुम उसे ले जा सकते हो…”
रोहन बोला- “आँटी, मैं अभी चलता हूँ मुझे बहुत सारा काम है, शाम को मैं आऊँगा। बिंदिया तुम तैयार रहना…”
रोहन के जाने के बाद बिंदिया अपने कमरे में चली गई। मैं भी उसके पीछे-पीछे उसके कमरे में आ गई। मैं कमरे में आते ही उसे छेड़ने लगी- “आज रोहन के साथ कहाँ जाने वाली हो… घूमने का प्रोग्राम है या कोई दूसरा प्रोग्राम है?”
बिंदिया ने मुश्कुराते हुए कहा- “बदमाश… वो तो रोहन को पता होगा की मुझे कहाँ घुमाने ले जाता है?”
अचानक आँटी कमरे में दाखिल हुई। सोनाली आँटी ने बिंदिया को देखते हुए कहा- “तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है। रोहन स्मार्ट है और शरीफ घराने का लगता है, मगर फिर भी तुम अपनी शादी पक्की होने तक अपने आपको उसके ज्यादा नजदीक मत लाना…” और आँटी यह कहते हुए कमरे से चली गई।
हम आपस में बातें करने लगे। ऐसे ही वक़्त गुजर गया और शाम हो गई। रोहन अपने बाइक पे बिंदिया को लेने आ चुका था। बिंदिया भी सज संवार के तैयार हो चुकी थी। रोहन आँटी से इजाजत लेते हुए बिंदिया को अपने साथ बाइक पर बिठाकर घुमाने ले गया। बाइक पर बिंदिया रोहन से कुछ दूर बैठी थी। कुछ आगे जाने के बाद रोहन एक बड़े खड्ढे से गाड़ी ले जाने लगा। बिंदिया अचानक अनबलेन्स होने लगी और रोहन की कमर में हाथ डालकर उससे चिपक गई।
बिंदिया के बड़ी-बड़ी चूचियां अपनी पीठ पर महसूस करते ही रोहन के मुँह से ‘आह’ निकल गई।
बिंदिया ने रोहन की सिसकी सुन ली और उसे डाँटते हुए कहा- “तुम्हें शर्म नहीं आती, अपनी गाड़ी जानबूझ कर खड्ढे से गुजारते हुये, मैं अगर गिर जाती तो?”
रोहन ने कहा- मेरे होते हुए तुम कैसे गिर सकती हो?
बिंदिया ने आगे सरकते हुए अपनी चूचियां रोहन की पीठ पे गड़ा दी और उसे कसकर पकड़ लिया। बिंदिया ने रोहन से कहा- “अब तुमको अपनी गाड़ी किसी खड्ढे में से गुजारने के कोई जरूरत नहीं है…”
रोहन मुश्कुराते हुए गाड़ी चलाने लगा।
बिंदिया ने रोहन से पूछा- “हम कहाँ जा रहे हैं?”
रोहन ने कहा- “पहले हम घूमने किसी अच्छी जगह चलेंगे, उसके बाद मैं तुम्हें शापिंग कराऊँगा…”
उधर बिंदिया के जाते ही मैं करुणा के कमरे में चली गई और उससे बातें करने लगी। आपको मैंने करुणा का सही परिचय तो कराया ही नहीं है। करुणा बिंदिया के छोटी बहन का नाम है वो अभी 18 साल की है। दिखने में बहुत खूबसूरत और गोरी है। उसकी चूचियां अपनी माँ की तरह बड़ी-बड़ी हैं मगर इतनी भी नहीं जितनी सोनाली आँटी की हैं। उसकी चूचियां और चूतड़ उसकी उमर के हिसाब से बड़ी दिखती हैं।
बातें करते हुए मैंने उससे पूछा- “करुणा पढ़ाई कैसी चल रही है?”
करुणा ने कहा- “धन्नो दीदी पढ़ाई तो बिल्कुल सही चल रही है मगर?”
मैंने जल्दी से करुणा से पूछा- “मगर क्या?”
करुणा- “वो दीदी एक लड़का है वो मेरे साथ पढ़ता है वो मुझे बहुत तंग करता है…”
मैंने पूछा- क्या करता है? करुणा मुझे बताओ डरने की कोई जरूरत नहीं है।
करुणा ने कहा- “वो बहुत गंदी-गंदी बातें करता है। वो पूछता है की तुम्हारी छातियों का साइज क्या है और तुम्हारे नितंबों का क्या साइज है?”
मैं हैरान होते हुए उसकी बातें सुनती रही। मैंने करुणा से पूछा- “उस लड़के का नाम क्या है?”
करुणा ने कहा- “उसका नाम सुरेश है…”
मैंने कहा- “तुम डरो मत… मैं कुछ करती हूँ, तुम्हारा स्कूल यहाँ से कितना दूर है और तुम किसके साथ स्कूल तक जाती हो और किसके साथ वापस आती हो?”
करुणा ने कहा- “स्कूल यहाँ से बिल्कुल करीब है और मेरे साथ दूसरी लड़कियां भी आती जाती हैं। मगर वो मुझे स्कूल में इंटर्वल में तंग करता है…”
मैंने करुणा से कहा- “तुम हो भी इतनी सुंदर… तुम्हें चलता हुआ देखकर तो सारे लड़के आहें भरते होंगे। बेचारे उस लड़के का क्या कसूर है?”
करुणा अपनी तारीफ सुनकर शर्म के मारे लाल हो गई। कुछ देर तक उससे बातें करने के बाद मैं उठकर आँटी के कमरे में आ गई।
आँटी ने मुझे देखते हुए कहा- “धन्नो अच्छा हुआ तुम आ गई, मुझे तुमसे बात करनी है…” और आँटी ने जाकर दरवाजा बंद कर दिया और मेरे पास बैठकर कहने लगी- “आकाश का फोन आया था रात को, उसके आफिस की एक पार्टी है वो तुम्हें उस पार्टी में देखना चाहता है…”
मैंने हैरान होते हुए पूछा- “मगर रात को हम बाहर कैसे जा सकते हैं?”
आँटी ने कहा- “उसकी तुम फिकर मत करो। अगर तुम जाना चाहो तो मैं इंतजाम कर देंगी…”
मैंने कहा- आप कहती हैं तो मैं तैयार हूँ।
आँटी ने मुझे प्यार से अपनी बाहों में भर लिया और कहा- “मुझे पता था की तुम मना नहीं करोगी…”
आँटी की बड़ी चूचियां मेरी चूचियों से टकरा रही थी। मैं अभी से रात के बारे में सोचकर उत्तेजना से गर्म हो रही
थी।
आँटी ने मेरी उत्तेजना देखकर कहा- “धन्नो रात को खाना खाने के बाद बिंदिया और करुणा सो जाएंगी, तुम उनके सोने के बाद तैयार हो जाना। आकाश अपनी गाड़ी भेज देगा जो हमें वहाँ ले जाएगी और पार्टी खतम होने के बाद हमें वापस यहाँ छोड़ देगी…”
मैंने आँटी से कहा- “मैं अपने कमरे में जा रही हूँ…”
आँटी ने मेरे होंठों को चूमते हुए मुझे बेड पर गिरा दिया। आँटी ने अपनी कमीज और ब्रा निकालकर सोफे पर फेंक दी और मेरे ऊपर चढ़कर वो अपनी चूचियां मेरे मुँह पर रगड़ने लगी। मैं पहले से ही बहुत गर्म थी, मैं । अपना मुँह खोलकर उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों को अपने मुँह में लेने की कोशिश करने लगी। आँटी मुझे तड़पाने के मूड में थी। वो अपनी चूचियों को मेरे मुँह पर रगड़कर फिर ऊपर उठा लेती थि और मैं उसकी चूचियों को मुँह में नहीं ले पाती थी।
मैंने आँटी की चूचियों को अपने हाथों से पकड़कर एक चूची अपने मुँह में ले ली। मैं उसकी चूची को बहुत जोर से चूसते हुए उसे अपने ऊपर से गिराकर उसके ऊपर चढ़ गई। मैंने अपनी कमीज और ब्रा निकाली और अपनी चूचियों को आँटी की नंगी चूचियों से रगड़ने लगी। मेरे मुँह से उत्तेजना के मारे सिसकियां निकल रही थी। मैंने नीचे होते हुये उसकी सलवार को खींचकर उतार दिया और उसकी कच्छी को भी नीचे सरका दिया। मैं उसकी चूत पे अपना मुँह ले जाने लगी।
उसकी चूत से बहुत अजीब गंध आ रही थी, जो मुझे ज्यादा मदहोश कर रही थी। मैंने अपना मुँह उसकी चूत पर रखा और उसकी चूत के दाने को चूसने लगी। आँटी के मुँह से मजे से सिसकियां निकल रही थी। मैंने अपनी सलवार भी उतार दी और कच्छी को नीचे करते हुए उल्टा होकर आँटी के मुँह पर अपनी चूत रख दी और उसकी चूत पर अपना मुँह रख दिया। हम 69 पोजीशन में थे।
आँटी अपनी जीभ निकालकर मेरी चूत पर फेरने लगी। मैं मजे से काँपते हुए आँटी की चूत में अपनी उंगली को डालने लगी। आँटी भी मजा लेते हुए अपनी जीभ को मेरी चूत की पतली दीवारों पे फिराते हुए अंदर डालने लगी। आँटी की जीभ अंदर होते ही मजे और उत्तेजना से मेरी साँसें फूलने लगी। मैं झड़ने के बिल्कुल करीब थी। मैंने अपनी उंगली को बहुत जोर से आँटी की चूत में अंदर-बाहर करते हुए अपनी जीभ उसके दाने पे फिराने लगी। आँटी भी अपने चूतड़ उछलने लगी। मेरी चूत में आँटी की जीभ ने तूफान मचा दिया। मैं उसकी जीभ की गर्माहट को ना सहते हुए झड़ने लगी।
मैंने झड़ते हुए अपने चूतड़ आँटी के मुँह पर जोर से दबा दिए। आँटी की जीभ मेरे और अंदर तक महसूस होने लगी। मैं अपनी दूसरी उंगली भी आँटी की चूत में डालकर जोर-जोर से आगे-पीछे करने लगी। आँटी भी मेरी उंगलियां गीली करते हुए झड़ने लगी। झड़ने के बाद हम दोनों कुछ देर तक ऐसे ही निढाल होकर एक दूसरे के ऊपर पड़े रहे। कुछ देर बाद मैं उठकर अपने कपड़े पहनने लगी।
आँटी ने मुझसे कहा- “धन्नो तुम सच में मुझसे भी ज्यादा गरम हो। मैं शादी से पहले इतनी गर्म नहीं थी, मगर तुम तो मुझसे भी दो कदम आगे हो…” ।
मैं कपड़े पहनकर अपने कमरे में चली गई और रात के बारे में सोचने लगी।
रोहन बिंदिया को एक बड़े तफरीह गाह में ले गया। वहाँ पर बहुत सारे झूले और घूमने के लिए एक बहुत बड़ा पार्क था। रोहन ने अपनी बाइक को बाहर लाक किया और बिंदिया को लेकर अंदर दाखिल हो गया। बिंदिया ने अंदर आते ही रोहन से कहा- “मुझे उस बड़े वाले झूले पे चढ़ना है…”
रोहन ने उस झूले की दो टिकटें ली और बिंदिया के साथ बैठ गया। थोड़ी देर में झूला लोगों से भर गया और चलने लगा। झूला बहुत बड़ा था उसके चलते ही बिंदिया को डर लगने लगा और वो अपना बाजू रोहन के कंधे पर रखते हुए उससे चिपक कर बैठ गई। रोहन की तो जैसे लाटरी निकल आई। उसने बिंदिया को कसकर पकड़ लिया और अपना हाथ उसकी कमर में डाल दिया। बिंदिया की नरम चूचियां रोहन के जिश्म से चिपकी हुई थी। रोहन बड़े मजे से उसकी चूचियों का मजा लेते हुए अपना हाथ उसकी कमर पर फिराने लगा। बिंदिया ने डर के मारे अपनी आँखें बंद कर ली थी।
रोहन ने बिंदिया को कहा- “अगर तुम्हें इतना डर लगता है तो तुम झूले पर क्यों चढ़ी?”
बिंदिया ने अपनी आँखें बंद किए ही कहा- “मुझे क्या पता था यह इतना तेजी के साथ चलता है?”
रोहन ने उसके डर का भरपूर फायदा उठाते हुए उससे कहा- “अगर तुम्हें इतना डर लग रहा है तो मेरी गोद पे आकर बैठो, मैं तुम्हें कसकर पकड़ लेता हूँ…”
बिंदिया डर के मारे जल्दी से आकर रोहन की गोद में बैठ गई। रोहन ने अपने हाथ आगे बढ़ाकर बिंदिया को कसकर पकड़ लिया। बिंदिया के भारी चूतड़ों की गर्मी ने रोहन के लण्ड को जगा दिया और वो उसकी पैंट में ही उछल-कूद मचाने लगा। रोहन ने अपने हाथ ऊपर करते हुए बिंदिया की दोनों बड़ी-बड़ी चूचियों को अपने हाथों में ले लिया। बिंदिया के मुँह से ‘आह’ निकल गई। रोहन अब उसकी चूचियों को बड़े जोर से सहला रहा था।
बिंदिया को भी मजा आ रहा था इसीलिए वो आँखें बंद किए ही अपनी चूचियां मसलवाती रही और रोहन को रोका नहीं। अचानक झूले की रफ़्तार कम होने लगी। बिंदिया ने जल्दी से अपने आपको संभालते हुए रोहन की गोद से उठकर सीट पर बैठ गई। झूला अब रुक चुका था। दोनों झूले से नीचे उतर गए।
बिंदिया ने सामने आइसक्रीम वाले को देखा और रोहन से कहा- “चलो आइसक्रीम खाते हैं…”
रोहन ने एक आइसक्रीम खरीदी। बिंदिया ने रोहन से कहा- “तुम नहीं खाओगे?”
रोहन ने शरारत से बिंदिया की चूचियों को देखते हुए कहा- “मेरा दिल कुछ और खाने का कर रहा है…”
बिंदिया ने शर्माकर अपना मुँह नीचे कर लिया। रोहन ने आइसक्रीम खरीद कर बिंदिया को दी और बिंदिया को कहा- “चलो सामने पार्क में चलकर बैठते हैं.”
पार्क में आकर बैठते हुए बिंदिया आइसक्रीम खाने लगी। वो अपनी जीभ निकालकर आइसक्रीम को चाट रही थी। रोहन ने फिर से बिंदिया को चिढ़ाते हुए कहा- “काश हम आइसक्रीम होते तो आपकी नाजुक जीभ को महसूस करते…”
बिंदिया रोहन की बातें सुनकर गर्म हो रही थी। अचानक बिंदिया ने आइसक्रीम को अपनी जीभ से चाटकर रोहन की तरफ बढ़ा दी। रोहन उससे आइसक्रीम लेकर अपनी जीभ से चाटने लगा और फिर बची हुई को बिंदिया के मुँह के पास ले गया।
रोहन ने बिंदिया से कहा- “आइसक्रीम को एक तरफ से तुम खाओ दूसरी तरफ से मैं खाता हूँ..”
बिंदिया एक तरफ से आइसक्रीम को अपनी जीभ से चाटने लगी, रोहन दूसरी तरफ से उसे चाटने लगा। ऐसे चाटते हुए दोनों की जीभे कभी-कभी एक दूसरे से टकरा रही थी। अचानक रोहन ने बची हुई आइसक्रीम से अपना हाथ हटा दिया और वो नीचे गिर गई। बिंदिया की जीभ सीधे आकर रोहन के मुँह में घुस गई। रोहन उसकी नाजुक जीभ को अपने होंठों से चूसने लगा। बिंदिया ने अपने हाथ रोहन के बालों में डाल दिए और दोनों न जाने कितनी देर तक एक दूसरे के होंठों को चूसते रहे। वो एक दूसरे में खो चुके थे।
कुछ देर बाद बिंदिया की साँस अटकने लगी और उसने अपना मुँह रोहन से जुदा किया। वो बुरी तरह हाँफ रही थी और उसकी चूचियां ऊपर-नीचे हो रही थीं। रोहन शरारत से अपनी जीभ निकालकर अपने होंठों पर फेरने लगा। बिंदिया का चेहरा उत्तेजना के मारे लाल हो चुका था।
बिंदिया ने अपनी साँसें ठीक करते हुए रोहन से कहा- “अब चलो बहुत देर हो गई है…”
रोहन ने बिंदिया को बाइक पर लेजाकर उसे शापिंग कराई और घर पर छोड़ दिया।
बिंदिया के आते ही मैं उसके कमरे में चली गई और उसे छेड़ने लगी- “वाह… बिंदिया आज तो आपने बड़ी शापिंग की है, सिर्फ शापिंग ही की या कुछ और भी किया है?”
बिंदिया ने गुस्से से मुझे मुक्का मारते हुए कहा- “तुम सुधरोगी नहीं, हमने सिर्फ शापिंग की है.”
हम कुछ देर बातें करते रहे और ऐसे ही टाइम गुजरता गया और रात हो गई। खाना खाकर सब अपने कमरे में सोने चले गये। मैं बाथरूम में जाकर नहाने लगी। मैं सोच रही थी की पार्टी में न जाने क्या होगा? मैं आज तक किसी पार्टी में नहीं गई थी। मेरा सारा जिश्म तपकर आग बन चुका था। शावर ओन करते ही ठंडा पानी मेरे बालों पर गिरकर चूचियों से होता हुआ मेरे सारे जिश्म को भिगोने लगा। मेरा गर्म जिश्म ठंडा पानी पड़ने से उत्तेजना के मारे और गर्म होने लगा। मैं अपना हाथ नीचे लेजाकर अपनी चूत को सहलाने लगी और दूसरे हाथ से अपनी चूचियों को दबाने लगी।
मेरी चूचियों के दाने तनकर पत्थर की तरह सख़्त हो गये थे। मैंने अपनी एक उंगली चूत में डाल दी और आगेपीछे करने लगी। मैं बहुत ज्यादा गरम हो चुकी थी। मेरे सारे जिम में आग लगी हुई थी। अब मैं अपनी दो उंगलियां चूत में डालकर आगे-पीछे करने लगी।
कुछ देर बाद मेरा जिश्म अकड़ने लगा और मैं हाँफते हुए झड़ने लगी। मुझे कुछ सुकून महसूस हुआ, मगर मुझे लण्ड का चस्का लग चुका था इसीलिए मुझे उंगली से कोई खास मजा नहीं आया था। मैं नहाकर बाहर निकली और एक नया ड्रेस पहनकर अपने आपको तैयार करने लगी।
कुछ देर बाद आँटी कमरे में दाखिल हुई और मुझे देखकर मुश्कुराते हुए कहने लगी- “धन्नो आज तो तू सच में हुश्न की देवी लग रही हो…”
मैंने आँटी से बैंक्स कहते हुए कहा- “आप भी तो आज बहुत सज-संवरकर हुश्न की देवी लग रही हो…”
सोनाली आँटी ने कहा- “चलो आकाश ने गाड़ी भेज दी है ड्राइवर हमारा इंतजार कर रहा है…”
मैं आँटी के साथ बाहर तक आ गई, आँटी ने बाहर से दरवाजे को लाक किया। बाहर एक बहुत बड़ी मर्सडीज गाड़ी खड़ी थी। हम जैसे ही गाड़ी के पास पहुँचे ड्राइवर ने गाड़ी का दरवाजा खोला और हम दोनों अंदर बैठ गये। ड्राइवर ने दरवाजा बंद किया और गाड़ी चलाना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद गाड़ी एक आलीशान बंगले के सामने जाकर रुक गई। इाइवर ने गाड़ी से उतरकर दरवाजा खोला और हम दोनों को अंदर ले गया।
आकाश हमें देखते ही वेलकम कहते हुए हमसे मिला। अंदर पार्टी का बहुत ही शानदार इंतजाम था। वो एक बहुत ही बड़ा हाल था, जिसमें चारों तरफ टेबल लगी हुई थी और वहाँ पर खाने और पीने की सभी चीजें मौजूद थी। हमारे अंदर जाते ही सारे लोग हमें गौर से देखने लगे।
आकाश ने हमारा उन सबसे परिचय कराया और उनको कहा- “यह हमारे बैंक के एक्स मैनेजर की वाइफ और भांजी है जो इस वक़्त हमारे साथ मौजूद नहीं हैं…”
कुछ देर बाद खाने का दौर चला, हम भी खाना खाने लगे। खाना खतम होते ही सारे लोग एक-एक करके जाने लगे। थोड़ी देर बाद सब जा चुके थे। आकाश हमको साथ में लेकर टेबल तक आ गया और तीन ग्लसों में बियर भरते हुए हमारी तरफ बढ़ा दी।
आँटी ने आकाश से कहा- “हमने कभी शराब नहीं पी है, हम नहीं पिएंगे…”
आकाश ने सोनाली आँटी की कमर में हाथ डालते हुए कहा- “डार्लिंग यह शराब नहीं है, बियर है। इसमें नशा नहीं होता…”
आँटी ने अपना हाथ बढ़ाकर ग्लास थाम लिया। मैंने भी आकाश से ग्लास ले लिया। जैसे ही मैं ग्लास को अपने मुँह में डाला मुझे उसका स्वाद कड़वी दवा जैसा लगा। मैं खांसने लगी और ग्लास को टेबल पर रखने लगी।
आकाश ने मेरे हाथ में अपना हाथ डालते हुए कहा- “पहले थोड़ा अजीब लगता है। तुम इसे एक ही पैंट में पी जाओ…”
मैं आँटी की तरफ देखने लगी, आँटी ने ग्लास को अपने मुँह पर रखकर सारा ग्लास खाली कर दिया।
मैं हैरानी से आँटी को देखते हुए अपना ग्लास मुँह पर रखकर एक ही घूट में पी गई।
आकाश ने मुश्कुराते हुए कहा- “यह हुई ना बात…” और अपना ग्लास खाली करते हुए फिर से तीनों ग्लास भर दिए। आकाश ने तीन चिकेन टिक्के उठाकर प्लेट में रख दिए और हमें खाने को कहा।
उसने खुद एक टिक्का उठा लिया और उसे खाने लगा। मैंने भी एक टिक्का उठाया और खाने लगी। उसके खाने के बाद आकाश ने दो ग्लास हमें थमाए और एक खुद लेकर हमसे चीयर्स कहा और उसने ग्लास खाली कर दिया। मुझे थोड़ा-थोड़ा नशा चढ़ने लगा था। मैंने भी दूसरा ग्लास मुँह पे रखा और खाली कर दिया। आँटी ने ग्लास खाली कर दिया। आकाश दोनों हाथ बढ़ाकर एक हाथ मेरी कमर में डाल दिया और दूसरा आँटी की कमर में डालकर हमें एक कमरे में ले गया। वहाँ पर एक दूसरा आदमी भी मौजूद था।
उसने हमें देखा और अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा- “आकाश यह तो सच में किसी परीलोक की परियां हैं…”
आँटी ने नशे में लड़खड़ाते हुए आकाश से कहा- “यह कौन है?”